My Dominant Hemisphere

The Official Weblog of 'The Basilic Insula'

Posts Tagged ‘hindi

कैसे हमारी भाषाएँ हमारी विचारधारा को शकल देती हैं | کیسے ہماری زبانیں ہماری سوچ و فکر کو شکل دیتی ہیں

with one comment

Group of early 20th century Ceylon Moors (via Wikipedia)


नमस्कार दोस्तो !

जैसा कि आप जान गए होंगे ये हिन्दी में मेरा पहला ब्लॉग पोस्ट है। मैं ये कोशिश कर रहा हूँ कि जितनी भी भाषाएँ मुझे आती हैं, इन सब का इस ब्लॉग पर इस्तेमाल किया करूँ।

कई दिन पहले मैं एक बढ़िया लैक्चर देख रहा था। जिसका विषय था Urdu Politics In Hyderabad State” अर्थात “उर्दू भाषा की राजनीति, हैदराबाद राज्य में। हैदराबाद राज्य से मतलब, उस वक़्त का जब वो निज़ाम सरकार द्वारा (लेकिन अंग्रेज़ो की निगरानी में) चलाया जाने वाला अलग मुल्क था।  निवेदन-कर्ता थीं कविता दतला और वो बता रही थीं कि किस तरह एक ज़माना हुआ करता था जब हिन्दी और उर्दू एक ही बोली हैं माने जाते थे। एक ऐसा ज़माना, जब ये समझा जाता था कि ये दोनों में फर्क केवल लिखने में ही है। किस तरह, जो लोग उर्दू जानते थे वो हिन्दी भी लिखना-पढ़ना समझते थे और उसी प्रकार जो लोग हिन्दी बोलते थे, वो उर्दू के भी माहिर थे। और कैसे जब अंग्रेजों ने दक्षिण एशिया के इस अनोखे उपमहाद्वीप पर कदम रखा, तो उनकी भी यही गणना थी, जो हम उस ज़माने की अंग्रेज़ी पुस्तकों में पा सकते हैं। कलकत्ता के “Royal Asiatic Society Of Calcutta” की पुस्तकालय में ऐसी कई पुस्तकें भरी पड़ी हैं। उर्दू और हिन्दी ऐसी जुड़ी हुई हैं, कि एक की परिपक्वता दूसरे की उन्नति पर निर्भर है।

आगे भाषण में ये भी सवाल आया, कि आख़िर ये दोनों भाषाएँ अपने इस अटूट और सुंदर रिश्ते से कब और कैसे मुंह मोड़ने लगीं? हाँ ये सच है कि आज भी चंद लोग होंगे जो इन दोनों के बीच ज़्यादा भेद-भाव नहीं करते और दोनों को उतना ही अपने व्यष्टित्व से जोड़ते हैं जो बड़ी ही उच्चपद वाली बात है। लेकिन आज अधिकतर लोग समझते हैं कि इन दोनों के बीच धार्मिक स्वभाव का अंतर है। और ऐसा जब कि इन दोनों के बीच धार्मिक अंतर पहले होता ही नहीं था। श्रीमति दतला इस इतिहास को खोजती हैं। कैसे भाषा से हम अपनी पहचान बनाते हैं, और किस प्रकार ये पहचान समय के साथ-साथ राजनैतिक कारणों से बदलती रहती है। और वो भी आम आदमी के बोध के बग़ैर।

भाषण में, विज्ञान की दुनिया में उर्दू को बढ़ोतरी देने वाली विश्वविद्यालयों और उन से जुड़े माननीय विधवानों के इतिहास पर, उर्दू तथा हिन्दी के बदलते रिश्तों और इन के द्वारा समाजी मनोवैज्ञानिकता पर असर, इन सब पर भी बहुत दिलचस्प बातें हुईं। कैसे लोगों के बीच फूट की कृत्रिम जड़ें पैदा हुईं, और इन के अंशतः कारण कैसे एक भव्य उपमहाद्वीप के लोगों को ऐसे लहू-लुहान बटवारे को सहना पड़ा, जो मानवीय इतिहास के सब से बड़े खून-खराबों में शामिल होता है।

मुझे इस लैक्चर की सब से दिलचस्प बात ये लगी, कि ये भाषा और उस के समाजी मनोवैज्ञानिकता तथा आत्मिक स्वभाव पर प्रभाव के ऊपर एक महत्वपूर्ण उपदेश देता है। एक ऐसा सबक जो सिखाता है मनुष्य के छोटेपन और उस के द्वारा उस के अंदर ऐसी मूर्खपूर्ण एवं भयानक संभावना को, जो कर सकती है मानव जाति को अपने ही हाथों नष्ट।

मेंने इस से पहले computer programming पर लिखा था। लेकिन आज के विषय से संबन्धित एक विचार तब सामने नहीं लाया था हालांकि वहाँ पर भी भाषा एवं मानसिक स्वभाव के तालमेल का भरपूर उदाहरण देखने को मिलता है। शायद अंदर ही अंदर ये सोचा था कि इस बारे में अगर अलग ही ब्लॉग पोस्ट हो तो बेहतर होगा। दरअसल जो व्यक्ति Python जैसी भाषा में programming करता है, उस की सोच और विचारधारा एक C भाषा में programming करने वाले से भिन्न होती है। मानो कि विचारधारा कि सीमाएं भाषा से बिलकुल जुड़ी होती हैं। जो व्यक्ति machine language में सोचता है, उसी को computer के अंदरूनी हिसाब-किताब का असली मानों में पता होता है, क्यूंकि वो computer जैसा सोचने लगता है। हमारी सोच किस कदम पर चलती है और कैसा रूप ढा लेती  है, ये ईस पर काफी कुछ निर्भर होता है कि हम किस भाषा में अपनी विचारधाराओं को सँवारते हैं।

उर्दू इतिहास से संबन्धित मेंने एक और बेहतरीन लैक्चर देखा, जो शहर दिल्ली के अनेक मान्यवर उर्दू विद्वानों के अन्योन्यदर्शनों से भरपूर है। लेखकों के साथ ये बातचीत, Delhi’s Mother Tongue: The Story Of Urdu” अर्थात “दिल्ली की मात्र-भाषा: उर्दू की कहानी, के नाम से उपलब्ध है। निर्देशक हैं, श्रीमान वरुण। इस भाषा के इतिहास का वर्णन करते हुए विद्वान ये कहते हैं, कि हिन्दी और उर्दू ऐतिहासिक रूप से एक ही बोल-चाल के ढंग हैं। उन का मानना है कि समय की लकीर पर उर्दू का जन्म हिन्दी से पहले हुआ, उस वक़्त जब सुल्तान बादशाहों का इस क्षेत्र की ओर आना हुआ। सुल्तानों की सेना को लोक भाषा, जो उस जमाने में ब्रज-भाषा थी, समझ नहीं आती थी। और वो चाहते थे (शायद सैन्य श्रेष्ठता के लिए) कि जनता के साथ ताल्लुक़ात पैदा करने के लिए एक ऐसी भाषा को जन्म दिया जाए जो खुद अपनी तुर्कीय भाषा के साथ साथ लोक-भाषा के मिलाव से एक अनोखा मिश्रण हो। और इस प्रकार उर्दू भाषा दुनिया में पहली बार आई। आरंभ में तो इस भाषा का ज़ोर बोल-चाल में आसानी पैदा करने पर ही था, और लिखाई-पढ़ाई बाद में आई। जब लिखाई-पढ़ाई आई, तब जा कर लोगों ने लिपि के अनेक रूप अपनाए जिन में से दो लिपियाँ वो हैं जिन को आजकल हम उर्दू लिपि और हिन्दी लिपि के नाम से पहचानते हैं। धीरे धीरे, दोनों भाषाओं की लोकप्रियता बढ़ते गयी, और एक भाषा की उन्नति से दूसरी भाषा पर भी प्रभाव पड़ता गया। हत्ता कि आज भी देखा जाए तो यही सिलसिला चलता जा रहा है!

लिपियों से एक और बात याद आई। क्या आप जानते हैं कि श्रीलंका में जो लोग “(Ceylon Moor)” “सीलोन मूर के नाम से अपनी पहचान बनाते हैं, उनहों ने एक जमाने में अरबी भाषा को अपनाया था? और मज़े की बात ये है कि बोल-चाल अरबी थी तो ज़रूर लेकिन लिपि होती थी तमिल में! यानि कि अरबी बोल को वो लोग तमिल लिपि में लिखा करते थे। समय के साथ साथ उन का अरबी से संबंध टूटता गया और वो अरबी को छोड़ कर पूरी तरह से तमिल बोली पर आ गए। है ना दिलचस्प बात!

आशा है कि आज का ये ब्लॉग पोस्ट आप सभी को अच्छा लगा होगा। आज के लिए इतना ही। मिलते हैं अगली बार!

————————————————————————————

کہانی اردو زبان کے پیدائش کی


(ایک ضروری بات: اس مضمون کو سہی روپ میں دیکھنے کے لئے آپ ناظرین کو یہ font ڈاونلوڈ کرکے اپنے سسٹم پر ڈالنا ہوگا . یہ ایسی font ہے جو خاص کمپیوٹر سکرین پر باآسانی پڑھنے کے لئے بنائی گئی ہے .)

آداب دوستو ،

جیسا کہ آپ جان گئے ہونگے یہ ہندی میں میرا پہلا بلوگ پوسٹ ہے . میں یہ کوشش کر رہا ہوں کی جتنی بھی زبانیں مجھے آتی ہیں ، ان سب کا اس بلوگ پر استعمال کیا کروں .

کئی دن پہلے میں ایک بڑھیا خطاب دیکھ رہا تھا . جس کا عنوان تھا Urdu Politics in Hyderabad State” یعنی کہ ” اردو زبان کی سیاست ، ریاست حیدراباد میں . ریاست حیدرآباد سے مطلب اس وقت کا جب وہ نظام کے زیر انتظام (لیکن انگریزوں کی نگرانی میں) الگ ملک ہوا کرتا تھا . خطیبہ تھیں محترمہ کویتا دتلا اور وہ بتا رہی تھیں کہ کس طرح ایک زمانہ ہوا کرتا تھا جب ہندی اور اردو ایک ہی بولی ہیں ، مانے جاتے تھے . ایک ایسا زمانہ ، جب یہ سمجھا جاتا تھا کہ یہ دونوں میں فرق صرف لکھنے میں ہی ہے . کس طرح ، جو لوگ اردو جانتے تھے وہ ہندی بھی لکھنا پڑھنا سمجھتے تھے اور اسی طرح جو لوگ ہندی بولتے تھے ، وہ اردو کے بھی ماہر تھے . اور کیسے جب انگریزوں نے جنوبی آسیہ کے اس انوکھے برصغیر پر قدم رکھا ، تو ان کا بھی یہی جائزہ تھا ، جو ہم اس زمانے کی انگریزی کتابوں میں پا سکتے ہیں . کلکتہ کے ” Royal Asiatic Society of Calcutta ” کے کتاب خانے میں ایسی کئی کتابیں بھری پڑی ہیں . اردو اور ہندی ایسی جڑی ہوئی ہیں کہ ایک کی برتری دوسرے کی ترقی پر منحصر ہے .

آگے خطاب میں یہ بھی سوال آیا ، کہ آخر یہ دونوں زبانیں اپنے اس اٹوٹ اور خوبصورت رشتے سے کب اور کیسے منہ موڑنے لگیں ؟ ہاں یہ سچ ہے کہ آج بھی چند لوگ ہونگے جو ان دونو کے بیچ زیادہ تفرق نہیں کرتے اور دونو کو اتنا ہی اپنی یکسانی سے جوڑتے ہیں ، جو بڑے اصالت والی بات ہے . لیکن آج بیشتر لوگ سمجھتے ہیں کہ ان دونوں کے بیچ مذہبی خصوصیات والا فرق ہے . اور ایسا جب کہ ان دونو کے درمیان مذہبی تفرق پہلے ہوتا ہی نہیں تھا . محترمہ دتلا اس تاریخ کو کھوجتی ہیں . کیسے زبان سے ہم اپنی پہچان بناتے ہیں ، اور کس طرح یہ پہچان وقت کے ساتھ ساتھ سیاسی اسباب سے بدلتی رہتی ہیں . اور وہ بھی عام آدمی کی آگاہی کے بغیر .

تقریر میں ، علمی دنیا میں اردو کو بڑھاوا دینے والی جامعیات اور ان سے جڑے نامور عالموں پر ، اردو اور ہندی کے بدلتے رشتوں اور ان کا اثر سماجی نفسیات ، ان سب پر بھی بہت دلچسپ باتیں ہوئیں . کیسے لوگوں کے بیچ پھوٹ کی مصنوعی جڑیں پیدا ہوئیں ، اور ان کے باعث (کچھ حد تک ہی سہی) کیسے ایک شاندار برصغیر کے لوگوں کو ایسے لہو-لہان بٹوارے کو سہنا پڑا ، جو انسانی تاریخ کے سب سے بڑے خون-خرابوں میں شامل ہوتا ہے .

مجھے اس تقریر کی سب سے دلچسپ بات یہ لگی ، کہ یہ زبان اور اس کے سماجی نفسیاتی حالات اور روح پر اثر کے اوپر ایک اہمترین سبق دیتا ہے . ایک ایسا سبق جو سکھاتا ہے آدمی کے چھوٹےپن اور اس کے ذریع اس کے اندر ایسی نکممی اور بھیانک قابلیت کو ، جو کر سکتی ہے آدم ذات کو اپنے ہی ہاتھوں تباہ .

میں نے اس سے پہلے computer programming پر لکھا تھا . لیکن آج کے موضوع سے متعلق ایک خیال تب سامنے نہیں لایا تھا ، حالانکہ وہاں پر بھی زبان اور نفسیاتی طبعیت کے تال میل کی بھرپور مثال دیکھنے کو ملتی ہے . شاید اندر ہی اندر یہ سوچا تھا کہ اس بارے میں اگر الگ ہی بلوگ پوسٹ ہو تو بہتر ہوگا . دراصل جو آدمی Python جیسی زبان میں programming کرتا ہے ، اس کی سوچ کا رخ و شکل ایک C زبان میں programming کرنے والے سے الگ ہوتا ہے . گویا کہ خیالات کے رخ کی سرحدیں ، زبان سے بلکل جڑی ہوتی ہیں . جو آدمی machine language میں سوچتا ہے ، اسی کو computer کے اندرونی حساب-کتاب کا اصلی معنوں میں پتا ہوتا ہے ، کیوں کہ وہ computer جیسا سوچنے لگتا ہے . ہماری سوچ کس قدم پر چلتی ہے اور کیسا روپ ڈھا لیتی ہے ، یہ اس پر کافی کچھ منحصر ہوتا ہے کہ ہم کس زبان میں اپنے خیالات کو سنوارتے ہیں .

اردو تاریخ سے متعلق میں نے ایک اور بہترین تقریر دیکھی ، جو شہر دلّی کے مختلف نامور اردو ادبیات کے ماہرین کے انٹرویو سے بھرپور ہے . ماہرین کے ساتھ یہ گفتگو ، Delhi’s Mother Tongue: The Story of Urdu” یعنی کہ ” دلّی کی مادری زبان : اردو کی کہانی ، کے نام سے ملے گی . منتظم ہیں جناب ورن . اس زبان کی تاریخ کی وضاحت کرتے ہوے ماہرین یہ کہتے ہیں ، کہ ہندی اور اردو تاریخی روپ سے ایک ہی بول-چال کے ڈھنگ ہیں . ان کا ماننا ہے کہ وقت کی لکیر پر اردو کی پیدائش ہندی سے پہلے ہوئی ، اس وقت جب سلطان بادشاہوں کا اس خطّے کی طرف آنا ہوا . سلطانوں کی فوج کو عوام کی زبان ، جو اس زمانے میں برج-بھاشا تھی ، سمجھ نہیں آتی تھی . اور وہ چاہتے تھے (شاید دفاعی حکمت عملی کے لئے) کہ عوام کے ساتھ تعلّقات پیدا کرنے کے لئے ایک ایسی زبان کو ایجاد کیا جاۓ جو خود اپنی ترکی زبان کے ساتھ ساتھ عام بولی کے ملاؤ سے ایک انوکھا مرکب ہو . اور اس طرح اردو زبان دنیا میں پہلی بار آئی . شروعات میں تو اس زبان کا زور بول-چال میں آسانی پیدا کرنے پر ہی تھا ، اور لکھائی-پڑھائی بعد میں آئی . جب لکھائی-پڑھائی آئی ، تب جا کر لوگوں نے دستاویز و خط کے مختلف روپ اپناۓ جن میں سے دو دستاویز وہ ہیں جن کو ہم آج کل اردو خط اور ہندی خط کے نام سے پہچانتے ہیں . دھیرے دھیرے ، دونوں زبانوں کی مقبولیت بڈتے گئی ، اور ایک زبان کی ترقی سے دوسری زبان پر بھی اثر پڑتا گیا . حتیٰ کہ آج بھی دیکھا جاۓ تو یہی سلسلہ چلتا جا رہا ہے !

دستاویزوں سے ایک اور بات یاد آئی . کیا آپ جانتے ہیں کہ سریلنکا میں جو لوگ “(Ceylon Moor)” “سیلون مور کے نام سے اپنی پہچان بناتے ہیں ، انہوں نے ایک زمانے میں عربی زبان کو اختیار کیا تھا ؟ اور مزے کی بات یہ ہے کہ بول چال تو عربی تھی تو ضرور لیکن خط و دستاویز تھا تامل میں ! یعنی کہ عربی بول کو وہ لوگ تامل دستاویز میں لکھا کرتے تھے . وقت کے ساتھ ساتھ ان کا عربی سے رابطہ ٹوٹتا گیا اور وہ عربی کو چھوڈ کر پوری طرح سے تامل بولی پر آ گئے .  ہے نہ دلچسپ بات !

امید ہے کہ آج کا یہ بلوگ پوسٹ آپ سبھی کو اچّھا لگا ہوگا . آج کے لئے اتنا ہی . ملتے ہیں اگلی بار !


Copyright Firas MR. All Rights Reserved.

“A mote of dust, suspended in a sunbeam.”


Search Blog For Tags: , , , , , , , ,

Written by Firas MR

November 9, 2010 at 11:39 pm